BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Thursday, February 27, 2014

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय









शिव शम्भो औढरदानी, प्रलयंकारी, दिगम्बर भगवान  श्री महाकालेश्वर से ह्रदय से  प्रार्थना है कि इस महा शिवरात्रि में इस अखिल सृष्टि पर वे प्रसन्न होकर प्राणी मात्र का कल्याण करें -

'कर-चरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम,
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व,
जय-जय करुणाब्धे, श्री महादेव शम्भो॥'
प्रभु शिव अपनी कृपा बरसायें और हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी हमने जो अपराध किए हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको है करुणासागर महादेव शम्भो! क्षमा कीजिए, एवं आपकी जय हो, जय हो।

  महाशिव रात्रि पर प्रभु को खुश करने हेतु  व्रत धारण करें और ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय का जप करते हुए प्रभु शिव को जल , दुग्ध , से अभिषेक कर  वेलपत्र चढ़ाएं ,  मंत्र जाप  जितना आप से सम्भव हो चाहे  5,7,9,11, 21 या  108 बार , और बम बम बोले जगद्प्रभु महाकाल आप पर अवश्य ही कृपा  बरसाना शुरू कर ही देंगे
जय महाकाल
सभी मित्रों को महाशिव रात्रि  की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं ।

 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर '५
प्रतापगढ़ उ प्रदेश
२७ ०२ २०१४ 

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, February 24, 2014

जो मुस्का दो खिल जाये मन ---------------------------------


जो मुस्का दो खिल जाये मन
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images
खिला खिला सा चेहरा तेरा
जैसे लाल गुलाब
मादक गंध जकड़ मन लेती
जन्नत है आफताब
बल खाती कटि सांप लोटता
हिय! सागर-उन्माद
डूबूं अगर तो पाऊँ मोती
खतरे हैं बेहिसाब
नैन कंटीले भंवर बड़ी है
गहरी झील अथाह
कौन पार पाया मायावी
फंसे मोह के पाश
जुल्फ घनेरे खो जाता मै
बदहवाश वियावान
थाम लो दामन मुझे बचा लो
होके जरा मेहरबान
नैन मिले तो चमके बिजली
बुत आ जाए प्राण
जो मुस्का दो खिल जाए मन
मरू में आये जान
गुल-गुलशन हरियाली आये
चमन में आये बहार
प्रेम में शक्ति अति प्रियतम हे!
जाने सारा जहान
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२०.०२.२०१४
४.३०-५ मध्याह्न
करतारपुर जालंधर पंजाब
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, February 17, 2014

‘लोरी’ गा के मुझे सुलाना


‘लोरी’ गा के मुझे सुलाना
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माँ बूढी पथरायी आँखें
जोह रही हैं बाट
लाल हमारे कब आयेंगे
धुंध पड़ी अब आँख
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जब उंगली पकड़ाये चलती
कही कभी थी बात
मै आज सहारा दे सिखलाती
जब बूढी तुम थामना हाथ
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सूरज मेरा पढ़ा लिखा था
संस्कृति अपनी था सीखा
मात पिता के थे सारे गुण
प्रेम, कर्म से भरा जोशीला
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घर में रोटी दाल सभी थी
मै ही थी पगलाई
जो विदेश खेती गिरवी रख
लाल को मै भिजवायी
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बहुत कमाया प्य्रार जताया
अभी और पढता हूँ माँ
कल जब पढ़ लिख पक्का हूँगा
तुझको ले आऊंगा माँ
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तब तो चिट्ठी आ जाती थी
हँस -रो के मै खा लेती थी
अब रो-रो ही खाती जीती
जितने दिन हैं सांसे चलती
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‘बुरी नजर’या हुआ विदेशी
कौन कला पश्चिम की भायी
सौ गुण युक्त ये सोने चिड़िया
काहे उसको रास न आयी
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बापू तेरे जर्जर हो गए
ठठरी पंजरी पड़ गये खाट
कुछ दिन चल फिर मै कर लूँगी
आँख अँधेरा कल क्या राम !
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रामचन्द्र का तो ‘चौदह’ था
तेरा कितना हे ! वनवास
क्रोध गुरेज नहीं है मन में
‘नजर’ भरूं ‘आ’ देखूँ आस
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दिल ये हहर-हहर कर टीसे
जब आते हैं उनके लाल
होली-दीवाली फागुन रंग
हम दो के सपनों की बात
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अपना देश भी किया तरक्की
घडी घडी अब होती बात
क्यों भूला सब माँ ममता रे !
भूले-विसरे कर ले बात
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मेरे दिल का दर्द प्रेम क्या
तेरे दिल को ना तड़पाता
‘खून’ मेरा क्या तेरे खून से
जुदा हुआ सब तोड़े नाता
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मर गयी या संवेदना तेरी
तू ‘मशीन’ अब यूरोप का
प्रेम प्यार रिश्ते-नातों की
मातृ-भूमि ना मया-दया
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‘आ’ बेटा आ अन्त समय ही
मेरी उंगली थाम दिखाना
मुँह में गंगा जल थोड़ा सा
‘लोरी’ गा के मुझे सुलाना
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५ ‘
करतारपुर , जालंधर
पंजाब
१५-०२ -२०१४
४-४. ३५ मध्याह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, February 5, 2014

माँ आँचल सुख

 
माँ आँचल सुख
( photo from google/internet with thanks)
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा
 ए माँ - ऐ माँ
तुझे कोटि कोटि प्रणाम !!

भूखे जागे व्यंग्य वाण सह
मान प्रतिष्ठा हर सुख त्यागा
पर नन्हे तरु को गोदी भर
नजर बचाए पल पल पाला
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

तू लक्ष्मी तू अमृत बदली
कामधेनु अरु कल्पतरु तू
जगदम्बा तू जग कल्याणी
करुना प्यार की देवी माँ तू
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

प्रथम गुरु -दर्पण -उद्बोधक
सखा श्रेष्ठ मंगल प्रतिमा तू
बंदों श्रृष्टि सृजन कुल द्योतक
चरण स्वर्ग शरणागत ले तू
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

स्वार्थ परे रह कर जीवन भर
जिसको तूने दिया सहारा
वो भूले भी -भुला सके क्या
माँ आँचल सुख प्यारा -न्यारा !
तू मिलती तो लगता ऐसे
भवसागर में मिला किनारा !!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२५.५.२०११
हजारीबाग १३.१२.१९९७ ११.३० पूर्वाह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं