BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, December 4, 2013

होंठों पर यूं -हंसी खिली हो

 आओ देखें कविता अपनी
रंग-बिरंगी -सजी हुयी -है
कितनी प्यारी -
मुझको -तुमको लगता ऐसे ...

जैसे भ्रमर की कोई
 कली खिली हो
भर पराग से उमड़ पड़ी हो
तितली के संग -
खेल रही हो मन का खेल !!

चातक  की चंदा
निकली हो आज -
पूर्णिमा-धवल चांदनी
धीरे -धीरे आसमान में
सरक रही हो
पास में आती
मोह रही हो सब का मन !!

बिजली ज्यों बादल का दामन
छू-आलिंगन कर 
चमक पड़ी हो
"बादल" खुश हो -
गरज पड़ा हो
बरस पड़ा हो  
"मोर"- सुहावन
 देख नजारा-"ये" -
मनभावन
नाच पड़ा हो
लूट लिया हो सब का मन !!

फटे -पुराने कपडे पाए
"वो"-अनाथ ज्यों
झूम पड़ा हो
चूम लिया हो
हहर उठा हो उसका मन !!!

रोटी के संग -
गुड़ पाए ज्यों -एक भिखारी
भूखा-प्यासा
तृप्त हुआ हो
होंठों पर यूं -हंसी खिली हो
धन्यवाद देता -जाये- मन !!!

भ्रष्टाचारी मूर्ख बनाये
जनता को ज्यों
"वोट" बटोरे
सिंहासन -आसीन हुआ हो
लूट लिया हो
वो "कुबेर' बन -
स्वर्ग गया हो
भूल गया हो -
अहं भरा 'तांडव' करता हो
देख "अप्सरा"-
 फूल गया हो उसका मन !!


तपे "जेठ"-जब सूखा झेले
मुरझाये "वो" -कहीं पड़ा हो
खेत -बाग़-वन !!
उमड़ -घुमड़ ज्यों देखे बदरा
लोट-लोट जाये -किसान 'मन' !!

कवि कोई ज्यों 'सुवरन 'देखे  
खिंचा चला हो >>
अंग-अंग को उसके देखे
उलट पलट के -जाँच रहा हो
चूम रहा -   सौ बार !!

दुल्हन जैसे खड़ी हुयी हो
नयी नवेली - बनी पहेली
कर सोलह श्रृंगार !!
करे -  अलंकृत –
"गजरा" लाये - फूल सजाये
रंग लगाए
सराबोर हो -
भंग का जैसे नशा चढ़ा हो
 हँसता जाए - 
कविता - देखे
बौराया हो  'फागुन" में मन !!! 

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर५
१०.३.२०११ जल पी बी




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं