BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, September 4, 2013

घर ही उजाड़ दिया --


घर ही उजाड़ दिया
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मतलब की दुनिया है
मतलब के रिश्ते हैं
कौन कहे मेले में
आज कहीं अपने हैं
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छोटे से पौधे को
बड़ा किया  प्यार दिया
सींचा सम्हाल दिया
फूल दिया फल दिया
तूफ़ान आया जो
घर ही उजाड़ दिया
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बिच्छू  के बच्चों ने
बिच्छू को खा लिया
इधर – उधर,  डंक लिये
'खा' लो सिखा दिया
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एक 'बाज' उड़ता था
'सौ' चिल्लाती थी
अधम को थका -डरा
बच कभी जातीं थीं
'सौ' बाज आज 'राज'
लाख उड़े चिड़िया भी
फंदा है फांस आज
'प्रेम' फंसी , जाती अकेली हैं
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नारी ने जना  जिसे
उसने ही लूट लिया
प्रेम-पूत बंधन को
जड़ से उखाड़ दिया
घोंप छुरा पीछे से
कायर ने नाश  किया
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
12.35 पूर्वाह्न -01.01 पूर्वाह्न
कुल्लू हिमाचल
२ ५ .० ८ - १ ३


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

10 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आदि गुरु को सादर प्रणाम-

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  2. आपकी यह सुन्दर रचना दिनांक 06.09.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  3. प्रिय रविकर जी जय श्री राधे ..आभार प्रोत्साहन हेतु ..गुरुवे नमः
    भ्रमर ५

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  4. आदरणीया इरा पाण्डेय दूबे जी जय श्री राधे .अभिनन्दन और .आभार प्रोत्साहन हेतु ..ओउम श्री गुरुवे नमः
    भ्रमर ५

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  5. प्रिय नीरज जी जय श्री राधे रचना आप के मन को छू सकी और आप ने इसे ब्लाग प्रसारण के लिए चुना सुन के ख़ुशी हुयी
    .आभार प्रोत्साहन हेतु ..ओउम श्री गुरुवे नमः
    भ्रमर ५

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  7. आदरणीया प्रतिभा जी अभिनन्दन ...रचना आपके मन को भायी सुन ख़ुशी हुयी
    आभार
    भ्रमर ५

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  8. बहुत सुन्दर आ. भ्रमर जी.

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  9. प्रिय राजीव जी रचना आप को आकर्षित कर सकी मन हर्षित हुआ
    आभार
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५