BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, August 27, 2013

धरती भी काँप गयी



धरती भी काँप गयी
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उड़ान भरती चिड़िया
जलती दुनिया
आंच लग ही गयी
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दाढ़ी बाल बढ़ाये
साधू कहलाये
चोरी पकड़ा ही गयी
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इतना बड़ा मेला
पंछी अकेला
डाल भी टूट गयी
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खंडहर भी चीख उठा
रक्त-बीज बाज बना
धरती भी काँप गयी
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कानून सोया था
सपने में रोया था
देवी जी भांप गयीं
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जल्लाद जाग उठा
गीता को बांच रहा
सुई आज थम गयी
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‘एक’ माँ रोई थी
‘एक ‘ आज रोएगी
अपना ही खोएगी
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
१ २ . १ ५ पूर्वाह्न -1 २ . ३ ४ पूर्वाह्न
कुल्लू हिमाचल
२ ५ .० ८ – १ ३


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

10 comments:

  1. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....

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  3. वर्तमान परिद्रश्य की मार्मिक रचना |

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  4. वाह!शब्द और भावों का सुंदर सृजन,,,बधाई

    RECENT POST : पाँच( दोहे )

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  5. आदरणीया सुषमा जी प्रोत्साहन के लिए आभार
    भ्रमर ५

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  6. प्रिय अजय जी रचना वर्तमान परिदृश्य को व्यक्त कर सकी लिखना सार्थक रहा आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  7. प्रिय धीरेन्द्र भाई रचना आप के मन को छू सकी लिखना सार्थक रहा आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  8. प्रिय सन्नी जी रचना आप को अच्छी लगी लिखना सार्थक रहा आभार प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५