BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, February 26, 2013

मै आतंकी बनूँ अगर माँ खुद "फंदा" ले आएगी

प्रिय दोस्तों इस रचना को ( कोई नहीं सहारा ) आज ३.३.२०१3 के दैनिक जागरण अखबार में कानपुर रायबरेली (उ.प्रदेश भारत ) आदि से प्रकाशित किया गया रचना को मान और स्नेह देने के लिए आप सभी पाठकगण और जागरण जंक्शन का बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५


मै आतंकी बनूँ अगर माँ खुद "फंदा" ले आएगी

हम सहिष्णु हैं भोले भाले मूंछें ताने फिरते
अच्छे भले बोल मन काले हम को लूटा करते
भाई मेरे बड़े बहुत हैं खून पसीने वाले
अत्याचार सहे हम पैदा बुझे बुझे दिल वाले
कुछ प्रकाश की खातिर जग के अपनी कुटी जलाई
चिथड़ों में थी छिपी आबरू वस्त्र लूट गए भाई
माँ रोती है फटती छाती जमीं  गयी घर सारा
घर आंगन था भरा हुआ -कल- कोई नहीं सहारा
बिना जहर कुछ सांप थे घर में देखे भागे जाते
बड़े विषैले इन्ही बिलों अब सीमा पार से आते
ज्वालामुखी दहकता दिल में मारूं काटूं खाऊँ
छोड़ अहिंसा बनूँ उग्र क्या ?? आतंकी कहलाऊँ ?
गुंडागर्दी दहशत दल बल ले जो आगे बढ़ता
बड़े निठल्ले पीछे चलते फिर आतंक पसरता
ना आतंक दबे भोलों से - गुंडों से तो और बढे
कौन 'राह' पकडूँ मै पागल घुट घुट पल पल खून जले
बन अभिमन्यु जोश भरे रण कुछ पल ही तो कूद सकूं
धर्म युद्ध अब कहाँ रहा है ?? ‘वीर बहुत- ना जीत सकूं
मटमैली इस माटी का भी रंग बदलता रहा सदा
कभी ओढती चूनर धानी कभी केसरिया रंग चढ़ा
मै हिम हिमगिरि गंधक अन्दर 'अंतर' देखो खौल रहा
फूट पड़े जो- सागर भी तब -अंगारा बन उफन पड़ा
समय की पैनी धार वार कर सब को धूल मिला देती
कोई 'मुकद्दर' ना 'जग' जीता अंत यहीं दिखला देती
तब बच्चा था अब अधेड़ हूँ कल मै बूढा हूँगा
माँ अब भी अंगुली पकडे हे ! बुरी राह ना चुनना
कर्म धर्म आस्था पूजा ले परम -आत्मा जाने
प्रतिदिन घुट-घुट लुट-लुट भी माँ अच्छाई को अच्छा माने
भोला भाला  मै अबोध बन टुकुर टुकुर ताका करता
खुले आसमाँ तले 'ख़ुशी' को शान्ति जपे ढूँढा करता


मै आतंकी बनूँ अगर माँ खुद "फंदा" ले आएगी
पथरायी आँखे पत्थर दिल ले निज हाथों पहनाएगी
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
प्रतापगढ़ उ प्र


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, February 14, 2013

आँख मिचौली वासंती संग


(फोटो साभार गूगल / नेट से )

पीत वसन से सजी धरती सखि
सोन से भाव में तोलि  रही सब
सोंधी सी खुश्बू हिया अब उमड़ति
प्रीति के चन्दन लपेटि रही अंग
कुसुमाकर बनि काम कुसुम तन
सिहरन बनि झकझोरि रहे हैं
नील गगन रक्तिम बदरी मुख
मलयानिल बढ़ी खोलि दिए हैं
पतझर के दिन बीते रे सजनी !
कोंपल-हरि  मन जीत लिए हैं
कूके कोयलिया मन बागन में
बौर सना रस प्रीति  सुधा जिमि
पवन मंद ज्यों बेल लिपटि फिर
दूर भये व्याकुल चितवन करि
आँख मिचौली वासंती संग
आनंदी आनंद मगन ह्वे
सब ऋतुवन को जीति लियो है …..


पियरी सर-सों मन मीत पियारी
प्रीति  अधर खिलि मोह लियो है
स्वर्ग अप्सरा मोर मगन  मन झंकृत कर  हे
दुल्हन वसुधा श्रृंगार चरम करि तीन लोक में
प्रकृति नटी हिय झंडा गाडि के रीझि रही है !!
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सभी प्रिय मित्रों को वसंत पंचमी और माँ सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभ कामनाएं ....जीवन में माँ शारदे ज्योति भरें मन पुष्पित पल्लवित हो और सदा सदा वसंत सा झूमता खिलखिलाता जीवन समाज   को कुछ   दे  के  ही  जाए  हम  समाज  से  जब  लेते  रहे  हैं  तो दे  के  जाना भी  हमारा  धर्म  ही तो है
जय  श्री राधे

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 5
प्रतापगढ़  अवध
14.02.2013 11.45 मध्याह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं