BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, December 4, 2013

होंठों पर यूं -हंसी खिली हो

 आओ देखें कविता अपनी
रंग-बिरंगी -सजी हुयी -है
कितनी प्यारी -
मुझको -तुमको लगता ऐसे ...

जैसे भ्रमर की कोई
 कली खिली हो
भर पराग से उमड़ पड़ी हो
तितली के संग -
खेल रही हो मन का खेल !!

चातक  की चंदा
निकली हो आज -
पूर्णिमा-धवल चांदनी
धीरे -धीरे आसमान में
सरक रही हो
पास में आती
मोह रही हो सब का मन !!

बिजली ज्यों बादल का दामन
छू-आलिंगन कर 
चमक पड़ी हो
"बादल" खुश हो -
गरज पड़ा हो
बरस पड़ा हो  
"मोर"- सुहावन
 देख नजारा-"ये" -
मनभावन
नाच पड़ा हो
लूट लिया हो सब का मन !!

फटे -पुराने कपडे पाए
"वो"-अनाथ ज्यों
झूम पड़ा हो
चूम लिया हो
हहर उठा हो उसका मन !!!

रोटी के संग -
गुड़ पाए ज्यों -एक भिखारी
भूखा-प्यासा
तृप्त हुआ हो
होंठों पर यूं -हंसी खिली हो
धन्यवाद देता -जाये- मन !!!

भ्रष्टाचारी मूर्ख बनाये
जनता को ज्यों
"वोट" बटोरे
सिंहासन -आसीन हुआ हो
लूट लिया हो
वो "कुबेर' बन -
स्वर्ग गया हो
भूल गया हो -
अहं भरा 'तांडव' करता हो
देख "अप्सरा"-
 फूल गया हो उसका मन !!


तपे "जेठ"-जब सूखा झेले
मुरझाये "वो" -कहीं पड़ा हो
खेत -बाग़-वन !!
उमड़ -घुमड़ ज्यों देखे बदरा
लोट-लोट जाये -किसान 'मन' !!

कवि कोई ज्यों 'सुवरन 'देखे  
खिंचा चला हो >>
अंग-अंग को उसके देखे
उलट पलट के -जाँच रहा हो
चूम रहा -   सौ बार !!

दुल्हन जैसे खड़ी हुयी हो
नयी नवेली - बनी पहेली
कर सोलह श्रृंगार !!
करे -  अलंकृत –
"गजरा" लाये - फूल सजाये
रंग लगाए
सराबोर हो -
भंग का जैसे नशा चढ़ा हो
 हँसता जाए - 
कविता - देखे
बौराया हो  'फागुन" में मन !!! 

सुरेन्द्रशुक्लाभ्रमर५
१०.३.२०११ जल पी बी




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, November 3, 2013

आओ हर घर की देहरी पर दीपक एक जलाएं

संकटनाशक   गणेश   स्तोत्र - प्रणम्य   शिरसा   देवं   गौरीपुत्र   विनायकम्

महालक्ष्मि   अष्टकं - नमस्तेऽस्तु   महामाये   श्रीपीठे   सुरपूजिते

श्रीसुक्तम् - ॐ   हिरण्यवर्णां   हरिणीं   सुवर्णरजतस्त्रजाम्

आओ हर घर की देहरी पर दीपक एक जलाएं
अंतर्मन में अपने सब के जो  प्रकाश भर जाए
हारे तम जैसे हारा है सदा सदा ये करें सुनिश्चित
 माँ लक्ष्मी को पूजें मन से वर पाएं निश्चित ही इच्छित   



सभी प्रिय मित्रों को सपरिवार इस दीपोत्सव  की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं।  दिवाली का ये पावन पर्व सदा सदा हमारे दिलों से अंधियारा मिटाये ये समाज एक हो नेक हो समभाव से ओत प्रोत हो और उजाला हमारे मन के हर कोने में भर जाए । मंगल  कामनाएं
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, October 27, 2013

दुखी आत्मा


दुखी आत्मा
k6133829
दुखी आत्मा माँ धरती की चीख -चीख चिल्लाये
कोख हनन जो नारी शक्ति नींद भला कैसे आये
कुछ दुधमुहे पड़े कूड़े में कलुषित मुख वाले भागें
हाय पूतना आज भी जीवित मानव क्या होगा आगे
अधनंगे कुछ भीख मांगते घृणा क्रोध हिय भर आते
ज्वालामुखी भरे कुछ उर तो सोच सोच कुछ मर जाते
आओ जागें जान लगा दें कहें कुपोषण भारत छोड़े
खिल खिल हँसे सुमन नन्हे सब भारत क्यारी खिल जाए
कल की पीढ़ी ज्ञान शक्ति से संस्कृति परचम लहराए
दुखी न होगी आत्मा धरती तो आनन्द और आये
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दुखी आत्मा माँ धरती की चीख -चीख चिल्लाये
अन्धकार में डूबे हम सब करे निशाचर अब भी राज
बहन बेटियाँ नहीं सुरक्षित शिक्षित मानव है धिक्कार
लगा मुखौटे काल बना तू पूजा निज करवाता है
लोभ-मोह छल प्रेम फंसा के शोषण करता जाता है
कुछ दहेज़ की बलि बेदी पर कुछ जीते जी मर जाती
स्वर्ग धरा होता रे मूरख कई ‘कल्पना रच जातीं
आओ जागें समता ला दें जननी -जनक दुलारी पूजें
दुर्गा काली शारद लक्ष्मी ‘निज’ शक्ति हैं आओ पूजें
दुखी न होगी आत्मा धरती तो आनन्द और आये
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दुखी आत्मा माँ धरती की चीख -चीख चिल्लाये
भूखे पेट अभी कुछ सोते बिलखें बच्चे हाहाकार
फटे चीथड़े शरमाती माँ विकसित हम आती ना लाज
दीन दुखी को और सताते क्या नेता क्या साधू आज
मति-मारी, हैं भ्रष्टाचारी , न्याय प्रशासन सोता आज
सड़क खा गए पुल गिरता है सभी योजना मुंह की खाती
ईमां मरता कुछ कुढ़ यारों कल आये तेरी भी बारी
अभी सांस अपनी है बाकी ‘पूत’ आत्मा ले रच जाएँ
नाम हमारा रहे जुबाँ पर ईमां प्रेम-वृक्ष हरियाये
दुखी न होगी आत्मा धरती तो आनन्द और आये
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर ५’
३. ५ ० -५.३ ५ पूर्वाह्न
१ ४ .१ ० .२ ० १ ३
कुल्लू हिमाचल भारत





दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, October 10, 2013

खुश्बू फ़िज़ा में बिखरी (तेरा चेहरा )

प्रिय मित्रों इस रचना ' तेरा चेहरा  " को आज १४.१०.२०१३ के दैनिक जागरण अखबार के कानपुर रायबरेली उ. प्रदेश के संस्करण में स्थान मिला

' तेरा चेहरा  ' को आप सब का स्नेह और जागरण जंक्शन का प्यारा मिला ख़ुशी हुयी

आभार
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ भारत

खुश्बू फ़िज़ा में  बिखरी 
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चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ
पल भर तो ठहर जाना 
नैनों की भाषा क्या है 
कुछ गुनगुना सुना-ना 
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आईना जरा मै  देखूँ 
क्या मेरी छवि बसी है 
इतना कठोर बोलने को 
कसमसा रही है …….
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आँखों में  आँखें डाले 
मै मूर्ति बन गया हूँ
पारस पारस सी हे री !
तू जान डाल जा ना
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खिलता गुलाब तू है 
कांटे भी तेरे संग हैं 
बिन खौफ मै ‘भ्रमर’ हूँ 
खिदमते-इश्क़ पेश आ ना 
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खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी 
मदमस्त है पवन भी 
अल्हड नदी यूँ दामन- 
को छेड़ती तो न जा 
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अम्बर कसीदाकारी 
अद्भुत नये रंगों से 
बदली है खोले घूँघट
कुछ शेर गुनगुनाना 
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सपने सुहाने दे के 
बिन रंगे चित्र ना जा 
ले जादुई नजर री !
परियों सी उड़ के ना जा 
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"मौलिक व अप्रकाशित" 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
09.10.2013
10.15-11.00 P.M.


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, October 5, 2013

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||

जय माँ शैलपुत्री ..



प्रिय भक्तों आइये माँ शैलपुत्री की आराधना निम्न श्लोक से शुरू करें उन्हें अपने मन में बसायें
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||
नवरात्रि का शुभारम्भ हो गया आज से सब कुछ पवित्र मन मंदिर ..एक  नया जोश ..भक्ति भावना से ओत प्रोत भक्तों के मन ..शंख और घंटों की आवाज लगता है सब देव भूमि में हम सब आ गए हैं

 दुर्गा पूजा के इस पावन  त्यौहार का   प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस  उपर्युक्त  मंत्र द्वारा की जाती है.
मां दुर्गा की पहली स्वरूपा और शैलराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के पूजा के साथ ही  यह पावन पूजा आरम्भ हो जाती  है. नवरात्रि  पूजन के पहले  दिन कलश स्थापना के साथ ही माँ शैल पुत्री की  पूजा और उपासना की जाती है. माँ  शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभित होता  है.
इस प्रथम दिन की उपासना में  योगी जन अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं और फिर  उनकी योग साधना शुरू होती है . पौराणिक कथा के अनुसार  मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष के घर में  कन्या के रूप में  अवतरित हुई थी.

उस समय माता का नाम सती था और इनका विवाह प्रभु शिव शंकर  से हुआ था. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आरम्भ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु भगवान शिव को  इस यज्ञं  में   आमंत्रित नहीं किया , अपनी  मां और बहनों से मिलने को आतुर माँ  सती बिना आमंत्रण  के ही जब अपने पिता के घर पहुंची तो उन्हें वहां अपने और प्रभु भोलेनाथ के प्रति कोई प्रेम न दिखाई दिया बल्कि  तिरस्कार ही दिखाई दिया . अपने पति का यह अपमान उन्हें बर्दाश्त नहीं होता
माँ  सती इस अपमान को  बिलकुल सहन नहीं कर पायीं  और वहीं योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर दिया  जब इसकी जानकारी भोले  शिव शंकर को होती है तो वे  दक्षप्रजापति के घर जाकर तांडव मचा देते हैं तथा अपनी पत्नी के शव को उठाकर पृथ्वी  के चक्कर लगाने लगते हैं। इसी दौरान सती के शरीर के अंग धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरते चले जाते  हैं। यह अंग जिन 51 स्थानों पर गिरते हैं वहां शक्तिपीठ की स्थापना हो जाती है ।
पुनः अगले जन्म में माँ ने  शैलराज हिमालय के घर में पुत्री रूप में जन्म लिया. शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण माँ  दुर्गा के इस प्रथम स्वरुप को शैल पुत्री नामकरण किया गया
नवरात्रि  के पहले  दिन भक्त घरों में कलश की स्थापना करते हैं जिसकी अगले आठ दिनों तक पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री  का यह अद्भुत रूप मन में रम जाता है  दाहिने हाथ में त्रिशूल व बांए हाथ में कमल का फूल लिए मां अपने भक्तों  को आर्शीवाद देने आती है।
ध्यान मंत्र .....माँ  शैलपुत्री की आराधना के लिए भक्तों को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए ताकि वह मां का आर्शीवाद प्राप्त कर सकें।
वन्दे वांछितलाभाय चंद्राद्र्धकृतशेखराम। वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
फिर क्रमशः  दुसरे से आठवें दिन तक
ब्रह्मचारिणी ,चंद्रघंटा ,कुस्मांडा ,स्कन्द माता ,कात्यायिनी , कालरात्रि, महागौरी माँ को पूजा जाता है


और फिर नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना होती है जो की सिद्ध, गन्धर्व,यक्ष ,असुर, और देव द्वारा पूजी जाती हैं सिद्धि की कामना हेतु , यहाँ तक की प्रभु शिव ने भी उन्हें पूजा और शक्ति ..अर्धनारीश्वर के  रूप में  उनके बाएं अंग में प्रतिष्ठापित हुईं
      या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः |
   या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः |
   या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः |
   नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः |
   जय माँ अम्बे ...माँ दुर्गा सब को सद्बुद्धि दें सब का कल्याण हो ...
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.
05.10.2013

10.15-10.40 P.M.

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, September 30, 2013

हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये

मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
माँ के जैसी साथ निभाया गुरु कह माथ नवाओ
ऊँगली पकडे चले -सिखाया -आओ साथ निभाओ
जैसा प्रेम दिया मैंने है जग में जा फैलाओ
उन्हें ककहरा अ आ इ ई जा के ज़रा सिखाओ
संधि करा दो छंद सिखा  दो अलंकार सिखलाओ
प्रेम वियोग विरह रस दे के अंतर ज्योति जलाओ
रच कविता जीवन दे उसमे कर श्रृंगार जगा दो
करुणा  दया मान मर्यादा सम्पुट हिंदी खोल बता दो
देव-नागरी लिपि है आत्मा परम-आत्मा कहिये
ज्ञान का है भण्डार ये हिंदी भाषा-भाषी ग्यानी कहिये
सरल ज्ञान नेकी है जिन दिल ना इन्हें मूढ़ समझिये
मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
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मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
हिंदी है कमजोर या सस्ती मूढ़ आत्मा ना बनिए
डूबो पाओ मोती गूंथो विश्व-बाजार में फिर -फिरिए
बीज को अपने खेती अपनी जो ना मान दिया तूने
बिना खाद के जल के जीवन मिटटी मिला दिया तूने
अहं गर्व सुर-ताल चूर कर गोरी चमड़ी भाषा झांके
वेद  शास्त्र सब ग्रंथन को रस-रच हिंदी काहे कम आंके
पत्र-पत्रिका चिट्ठी-चिट्ठे ज्ञान अपार भरा हिंदी में
रोजगार व्यवहार सरल है साक्षात्कार कर लो हिंदी में
हिंदी भत्ता वेतन वृद्धि खेत कचहरी हिंदी आँको
हिंदी सहमी दूर कहीं जो गलबहियां जाओ तुम डालो
हार 'नहीं' है 'हार' तुम्हारा विजय पताका जा फहराओ
इस हिंदी की बिंदी  को तुम माँ भारति  के भाल सजाओ
कल्पतरु सी गुण समृद्धि सब देगी हिंदी नाज से कहिये ……..
मै  संस्कृति की सखी सहेली बहन समझिये
हिंदी हूँ मै हिन्द की बेटी सिर का ताज मुझे कहिये
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ' भ्रमर ५'
११ -१ १ .५ ० मध्याह्न
३ ० सितम्बर २ ० १ ३
प्रतापगढ़

वर्तमान कुल्लू हिमाचल भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, September 27, 2013

भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी

भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
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सीधी सादी नेक बड़ी हूँ दिल की रानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
मै महलो हूँ गाँव बसी हूँ जंगल में भी
आदि काल से जन-जन में हूँ आदिवासी
कुछ सुधरो कुछ मुझे सुधारो चाह यही
मन में झांको हीरा-पन्ना सगुण भरी
मुझे  सजाओ रूप संवारो मै महरानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
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बड़ा दर्द होता है सुन-सुन अंग्रेजी महरानी
घर की देवी छोड़ पूजते बनते गए विदेशी
कोमल संस्कार बच्चों के छीने घूँट पिलाये
आधी हिंदी इंग्लिश आधी खिचड़ी उन्हें खिलाये
सौतन कितना प्रेम करेगी क्या ये समझ न आये
मान दिया है घर में रखा तेरी खातिर मान गँवाए
अन्तः झांको धनी  बहुत हूँ सरस्वती वरदानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी …………..
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आकाशवाणी दूरदर्शन विद्यालय नैतिकता लाओ
रेडिओ स्टेशन टी वी सेंटर स्कूल टेबल ना मन लाओ
अधकचरा अधपके ज्ञान से ना साक्षात्कार कराओ
एम्प्लाई इम्प्लायर मन को हिंदी के रुख लाओ
पत्र पत्रिका ग्रन्थ या पुस्तक हिंदी सारी छपवाओ
मेरे रूप में झांको  लिख दो चिट्ठे बहुत बनाओ
लेख लिखो तुम कविता लिख दो तकनीकें लिख डालो
ज्ञान भरा है निज भाषा में विश्व गुरु बन छाओ
उन्हें भी दे दो धनी बनो तुम मै लक्ष्मी महरानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी …………..
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हर्षित मै हूँ कुछ ने समझा मुझे पूजते हिंदी रानी
आओ जुडो और कुछ भाई  बहन सभी हूँ देवनागरी
सुन्दर सुघड़ बड़े गुण वाली समृद्ध तुम्हे बनाऊँगी
जन-जन में पहचान दिला के तुझको ताज पिन्हाऊँगी
भारत -भाषा संस्कृति अपनी नेह प्रेम ले तुझमे बसती
मुझको लो पहचान अभी भी ना मानो मुझको तुम सस्ती
अधजल गगरी छलके जाए मै ‘प्रिय’ गागर-सागर
कर मंथन हे ! अमृत पा ले हिंदी संग बन "मानव"
दूध की नदिया सोने चिड़िया खान भरी मै रानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी ....................
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"मौलिक व अप्रकाशित"
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
24.09.2013 6.19-7.03 पूर्वाह्न
प्रतापगढ़
वर्तमान -कुल्लू हिमाचल प्रदेश
भारत


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, September 24, 2013

भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी हिंदी (ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है)…


भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी
हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है
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मस्तक राजे ताज सभी भाषा की हिन्दी
ज्ञान दायिनी कोष बड़ा समृद्ध विशाल है
संस्कृत उर्दू सभी समेटे अजब ताल है
दूजी भाषा घुलती हिंदी दिल विशाल है
लिए हजारों भाषा करती कदम ताल है
जन - मन जोड़े भौगोलिक सीमा को बांधे
पवन सरीखी परचम लहराती है हिंदी
भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
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१ १  स्वर तो ३ ३ व्यंजन 52 अक्षर अजब व्याकरण
गिरना उठना चलना सब सिखला बैठी अन्तःमन
कभी कंठ से कभी चोंच से होंठ कभी छू आती हिन्दी
सुर की मलिका  सात सुरों गा, दिल अपने बस जाती हिन्दी
उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम दसों दिशा लहराती हिन्दी
आदिकाल से रूप अनेकों धर भाषा संग आती हिन्दी
गाँव-गाँव की जन-जन की अपनी भाषा बस जाती हिन्दी
उन्हें मनाती मित्र बनाती चिट्ठी -चिटठा लिखवाती हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
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शासन भी जागा है अब तो रोजगार दिलवाती हिन्दी
पुस्तक और परीक्षा हिन्दी  साक्षात्कार करवाती हिन्दी
अभियन्ता तकनीक लिए मंगल शनि जा आती हिन्दी
शिक्षण संस्था संस्कृति अपनी दिल में पैठ बनाती हिन्दी
आँख-मिचौली सुप्रभात से बाल-ग्वाल से पुष्प सरीखी
न्यारी-प्यारी महक चली ये गली-गली है बड़ी दुलारी
नमो -नमः तो कभी नमस्ते झुके कभी नत-मस्तक होती
सिर ऊँचा कर गर्व भरी परचम अपना लहराती हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
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गुड़ से मीठी शहद भरी जिह्वा -जिह्वा बस जाती हिन्दी
मातु-कृपा है श्री भी संग में रचे विश्वकर्मा सी हिन्दी
गुरु-शिष्य हों माताश्री या पिताश्री  से सीखे हिन्दी
क्रीड़ा करती उन्हें पढ़ाती विश्व-गुरु बन जाती हिन्दी
लौहपथगामिनी छुक-छुक छुक-छुक भक-भक अड्डा जाती
मेघ-दूत बन , दिल की पाती प्रियतम को पहुंचाती
प्रिय प्रियतम का तार जोड़ मन दिल के गीत गवाती हिन्दी
सखी-सहेली छवि प्यारी ले सब का नेह जुटाती हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
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इसकी महिमा न्यारी प्यारी बड़ी सुकोमल दृढ है हिन्दी
पारिजात सी कामधेनु सी मनवांछित दे जाती हिन्दी
छंद काव्य या ग्रन्थ सभी हम आओ रच डालें हिन्दी
प्रेम शान्ति हो कूटनीति या राजनीति की चिट्ठी पाती
हिंदी रस में डुबा लो प्यारे जन-कल्याण ये कर आती
आओ वीरों सभी सपूतों बेटी-बिदुषी ले के हिन्दी
साँसें  हिंदी जान है हिन्दी वतन अरे ! पहचान है हिन्दी

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
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मान है ये सम्मान है ये, भारत माता की बिन्दी हिन्दी
अलंकार है रस-छंदों की गागर-सागर- मंथन हिन्दी
रमी प्रकृति में हमें झुलाती सावन-मनभावन सी हिन्दी
कजरी-तीजपर्व संग  सारे चोला -दामन साथ है हिन्दी
आओ रंग-विरंगे अपने पुष्प सभी हम गूंथ-गूंथ के माला  एक बनायें
माँ भारति का भाल सजा के जोड़ हाथ सब नत-मस्तक हो जाएँ
माँ का लें  आशीष नेक और एक बनें हम हिन्दी से जुड़ जाएँ
आओ भरें उड़ान परिन्दे  सा पुलकित हो परचम हिन्दी लहरायें

भारत माँ की बिंदी  प्यारी अपनी हिन्दी  ...........
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'
3.15 A.M. -4.49 A.M.
22.09.2013
प्रतापगढ़
वर्तमान-कुल्लू हिमाचल

भारत



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं