गन्दी फर्श यत्र तत्र खड़े-पड़े लोग
इस भीड़ भरे मेले के झमेले में
धक्का खाती भटकती
वो महिला अपने दुध मुहे शिशु को
जर्जर आंचल से ढांके
बंदरिया सी गोद में चिपकाए -लटकाए
एक को अंगुली पकडाए
मुक्त किये-साथ दूजे को
हाथ पसारे नजरें मिलाये
दिल पिघला रही थी
घिघिया रही थी
बाबू बच्चा भूखा है …
भगवान भला करेगा
लोग ताकते घूरते डांटते बढ़ जाते
उस अबोध ने अनुकरण कर
माँ का साथ निभाया -मुस्कुराया
हाथ पसारा-मै अवाक ..
उसकी नजरों में गड़ गया
उसने तपाक से हाथ पीछे खींचा
क्रोध से बिसूरते ताका
मुझे पढ़ा -मुझे आँका
उसका स्वाभिमान जाग गया था
हमारी व्यवस्था पर करारा
तमाचा मार गया था
मेरा बड़प्पन अहम् भाग गया था
दो पैसे दे हम बाबू -विधाता बन जाते हैं
——————————————–
गन्दी राजनीति -गंदे लोग
कुनीति कुचक्र राजनीति के भंवर में
मै खो गया था
एक तरफ गोरे चिट्टे सजे लोग
लाल सेब से गाल
अंगूरी और अंगूर का रस लेते
गर्म तवे पर रोटी सेंकना
उस और ये भूख मिटना-बिकना-बेंचना
स्वाभिमान मर जाता है-
जब हम बड़े होते हैं ?
बड़ी वाली बेटी माँ हाथ पसारे
किसी की जंघा किसी का कन्धा दबाते
अब भी गिड़ गिड़ा रही थी
हम अपना विकास- मौलिक अधिकार
राज्य सभा -लोकसभा -प्रजातंत्र
उसकी आँखों में देख
रो पड़े थे …….
आँखों से झर पड़े आंसू जैसे
इस मैले कुचैले तंत्र को साफ़ करने का
असफल प्रयास कर रहे हों
——————————-
जम्मू बस स्टैंड
७-७.२० पूर्वाह्न
२२.०३.२०१२
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
इस भीड़ भरे मेले के झमेले में
धक्का खाती भटकती
वो महिला अपने दुध मुहे शिशु को
जर्जर आंचल से ढांके
बंदरिया सी गोद में चिपकाए -लटकाए
एक को अंगुली पकडाए
मुक्त किये-साथ दूजे को
हाथ पसारे नजरें मिलाये
दिल पिघला रही थी
घिघिया रही थी
बाबू बच्चा भूखा है …
भगवान भला करेगा
लोग ताकते घूरते डांटते बढ़ जाते
उस अबोध ने अनुकरण कर
माँ का साथ निभाया -मुस्कुराया
हाथ पसारा-मै अवाक ..
उसकी नजरों में गड़ गया
उसने तपाक से हाथ पीछे खींचा
क्रोध से बिसूरते ताका
मुझे पढ़ा -मुझे आँका
उसका स्वाभिमान जाग गया था
हमारी व्यवस्था पर करारा
तमाचा मार गया था
मेरा बड़प्पन अहम् भाग गया था
दो पैसे दे हम बाबू -विधाता बन जाते हैं
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गन्दी राजनीति -गंदे लोग
कुनीति कुचक्र राजनीति के भंवर में
मै खो गया था
एक तरफ गोरे चिट्टे सजे लोग
लाल सेब से गाल
अंगूरी और अंगूर का रस लेते
गर्म तवे पर रोटी सेंकना
उस और ये भूख मिटना-बिकना-बेंचना
स्वाभिमान मर जाता है-
जब हम बड़े होते हैं ?
बड़ी वाली बेटी माँ हाथ पसारे
किसी की जंघा किसी का कन्धा दबाते
अब भी गिड़ गिड़ा रही थी
हम अपना विकास- मौलिक अधिकार
राज्य सभा -लोकसभा -प्रजातंत्र
उसकी आँखों में देख
रो पड़े थे …….
आँखों से झर पड़े आंसू जैसे
इस मैले कुचैले तंत्र को साफ़ करने का
असफल प्रयास कर रहे हों
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जम्मू बस स्टैंड
७-७.२० पूर्वाह्न
२२.०३.२०१२
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं