BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, June 19, 2012

सोन परी हिय मोद भरे !


चित्र से काव्य प्रतियोगिता अंक -१५ (OBO)
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बिटिया रानी खिली कली सी
सागर चीरे- परी सी आई
बांह पसारे स्वागत करती
जन मन जीते प्यार सिखाई !
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कदम बढ़ाओ तुम भी आओ
धरती अम्बर प्रकृति कहे
गोद उठा लो भेद भाव खो
सोन परी हिय मोद भरे !
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हहर-हहर मन ज्वार सरीखा
चन्दा को अपनाने दौड़ा
कहीं न मुड़ जाए  'पूनमसा
नैन हिया भर सीपी -मोती पाने दौड़ा !
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बिना कल्पना ,बिन प्रतिभा के
लक्ष्मी कहाँ रूठ ना जाए
आओ प्यारे फूल बिछा दें
चरण 'देविके नेह लुटाएं !
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ये अद्भुत मुस्कान- धरा की
दर्द व्यथा कल से हर लेगी
सोन चिरइया -नदी दूध की
कल्प-वृक्ष बन वांछित फल  देगी !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर ५ '
कुल्लू यच पी १९.६.२०१२




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

9 comments:

  1. शुभकामनाएं |
    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  2. आदरणीय रविकर जी आभार आप का ..रचना पसंद आई आप को सुन हर्ष हुआ ..
    भ्रमर ५

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  3. आदरणीय रविकर जी बहुत सुन्दर जहां भी पहुंचे धर लपेटा ...
    सरस्वती बैठी लगें सदा आप की जिह्वा
    अजब कारनामे दिखें बने रहो हे ! मितवा !
    भ्रमर ५

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  4. आदरणीय धीरेन्द्र जी बेटियों के स्वागत में रची ये रचना आप को अच्छी लगी लिखना सार्थक रहा
    आभार
    भ्रमर ५

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  5. आदरणीया डॉ मोनिका शर्मा जी ये सोन परी आप के मन को छू सकी सुन ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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  6. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ....!
    धन्यवाद ।

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  7. आदरणीय वैद्य जी स्वागत है आप का यहाँ ..रचना भाव पूर्ण लगी और बेटियों के स्वागत में कुछ कह सकी सुन ख़ुशी हुयी आभार
    भ्रमर ५

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  8. बढ़िया प्रस्तुति .

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५