BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, April 21, 2012

हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे या कर दे तू “हीरो ”


हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
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हे प्रभु मुझको जीरो (शून्य) कर दे
शांत चित्त मै सुप्त रहूँ बस
दिवा स्वप्न ही देखे जाऊं
अन्यायी -पापी -राक्षस को
सपने में मै धूल चटाऊँ
खुश रखूँ अपने – मन को मै
इच्छा पूरी कर पाऊँ
इस जगती के “मूर्ख ” मनुख से
लड़-भिड़ काहे खून बहाऊँ !
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अगर “एक” कोई भल-मानस
इन्सां आगे कदम बढ़ाये
मै “जीरो” उससे जुड़ -जुड़ के
शक्ति “एक” की “खरब “ बनाऊं
रंजो गम दिल के सारे मै
उसके ले कर – “शून्य” बनाऊँ
सिर आँखों के पलक पांवड़े
बिठा के – उस “प्यारे भाई” को
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फूलों का मै हार पिन्हाऊँ
पूजे जाऊं जोश भरूँ मै
“मंच ” चढा स्वागत करवाऊं
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सब जीरो मुझ संग फिर मिल के
सुन्दर – प्यारा – जहां बनायें
मुक्त रहें – मन मिले हों सब के
ऊषा -निशा -खिल-खिल दिखलायें
गर्व से उन्नत शीश हमारे “कर्म” हमारा
घर आंगन फसलें हरियायें
पूत – सपूत – बनें सारे ही
जग-जननी ऐसी कृति लायें
पूजन भजन करूँ तब इनका
मुस्काऊँ मै “माथ” नवाऊँ !
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या प्रभु मुझको “हीरो” (अभिनेता ) कर दे
पीटा जाऊं -पड़ा रहूँ मै धूल चाटता
अन्यायी के तीरों घायल
लहू – लुहान खून से अपने
इस प्यारी धरती माता को सींचे जाऊं
लडूं सदा मै अन्यायी से जोश भरे नित
कोड़े चाबुक से छलनी मै देह कराऊँ
दर्द जगेगा – ममता रोये – सारे दें फिर साथ
जोश – जूनून भरे फिर “उठ” मै
अन्यायी को धूल चटाऊँ
घर में घुसकर खींच -खींच कर
अच्छाई की देवी आगे “भेंट” चढाऊँ
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दौड़ा-दौड़ा भीड़ में उनको
करनी का फल मै दिखलाऊँ
माँ बहनें सब “लात” मार दें
शोषित जन “छाती” चढ़ जाएँ
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( सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
धूल चाट कर – नाक रगड़ कर
“पापी” जब प्रायश्चित कर ले
चौराहे इन चोर-पापियों को टाँगे मै
बुरे काम का बुरा नतीजा
मुहर लगाऊं -मुक्ति दिलाऊँ
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हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
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प्रिय मित्रों आइये अन्ना जी के हाथों को और मजबूत करें ……एक मई से स्वागत समारोह शुरू हो रहा है ……..जय श्री राधे
शुक्ल भ्रमर ५
८.१६-८.४९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी -२०.०४.१२

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

9 comments:

  1. zero kee khoj to bharat ne kee thee..lekin upyuog aapne bataya zero ka....jitni taarif kee jaaye kam hai..behad shandaar..sadar badhayee aaur sadar amantrn ke sath

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  2. हे प्रभु आनंद दाता ज्ञान सब हर लीजिए ,

    मंद बुद्धि बालकों सा हम को भी कर दीजिए .

    शून्य वाद का दर्शन हमारा मौलिक चिंतन है .ये सृष्टि भी शून्य आकार से अस्तित्व में आई है ,विस्तार पाई है,बा -रहा इसी शून्य में समाई है . सृष्टि का आदिम अणु भी शून्य आकारी था .शून्य है परम तत्व .

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  3. बेहतरीन रचना....
    नमन...

    अनु

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  4. बहुत सुन्दर ।
    मूर्ख मनुष्य से लड़-भिड कर
    खून बहाना भी मूर्खता ही तो है ।
    प्यारी वन्दना ।।

    सादर

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  5. सुंदर विचार ....उम्दा रचना

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  6. उम्दा व सारगर्भित अभिव्यक्ति।

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  7. हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
    या कर दे तू “हीरो ”
    बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
    दूभर होता जीना !

    सुंदर वंदना.

    बधाई.

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५