BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Saturday, April 28, 2012

"ईश्वर " ( 1)


"ईश्वर " ( 1)
क्या निंदा या करे  प्रशंसा
जिसको तू ना जाने
कोटि-कोटि ले जन्म अरे हे !
मानव ! तू ईश्वर पहचाने !
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एक एक अणु - कण सब उसका
सब हैं उसके अंश
जगत नियंता जगदीश्वर है
वो अमोघ है, अविनाशी है, वो अनंत !
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ओउम वही है शून्य वही है
प्रकृति चराचर सरल विषम - सब
निर्गुण-सगुण ओज तेज सब
जीवन- जीव -है पवन वही !
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जल भी वो है अग्नि वही है
जल-थल उर्वर शक्ति आस है
तृष्णा - घृणा निवारक स्वामी  बुद्धि ज्ञान है
ऋषि वही है, सिद्धि वही है अर्थ वही है !
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ज्ञानी ब्रह्म रचयिता सब का विश्व-कर्म है
वो दिनेश है वो महेश है वो सुरेश है
रत्न वही है रत्नाकर है देव वही
कल्प वृक्ष है सागर है वो कामधेनु है !
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वो विराट है विभु है व्यापक वो अक्षय है
सूक्ष्म जगत है दावानल है बड़वानल है
वो ही हिम है वही हिमालय बादल है वो
अमृत गंगा मन तन सब है- जठराग्नि है
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लील सके ब्रह्माण्ड को पल में
धूल - धूसरित कर डाले
क्या मूरख  निंदा  तुम करते
जो जीवन दे तुझको पाले !
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सत्य वही है झूठ वही है नाना वर्ण रंग भेद है
उषा वही है निशा वही है अद्भुत धांधा  वो अभेद्य है
वेद उपनिषद छंद गीत  गुरु - ग्रन्थ बाइबिल  कुरान है
सुर ताल वही सूत्र वही सब कारक है संहारक है
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ऋषि वैज्ञानिक देव दनुज साधू - सन्यासी
पाल रहा - नचा रहा - लीलाधर बड़ा प्रचारक है
कृति अपनी के कृत्य देख सब - खुश भी होता
कभी कभी वो अश्रु बहाए हर पहलू का द्योतक होता  !
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ईहा – घृणा - मोह - माया संताप - काम का
अद्भुत संगम काल व्याल जंजाल जाल का
प्रेम किये है तुझको पल पल देखो प्यारे
जीवन देता कण कण तेरे सदा समाये !
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आओ नमन करें ईश्वर का - परमेश्वर का
अहम छोड़कर प्रेम त्याग से शून्य बने हम
जीवन उसके नाम करें हम मुक्त फिरें इक ज्योति बने
हर जनम जन्म में मानव बन आ मानवता को प्रेम करें !
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अपनी मूढ़ बुद्धि है जितनी -जितनी  दूर चली जाए
सारा जीवन आओ खोजें खोज - खोज जन हित में लायें
निंदा और प्रशंसा छोड़े बिन-फल इच्छा - कर्म करें
पायें या ना पायें कुछ भी उसके प्यारे हो जाएँ  !
---------------------------------------------------------------------------------------------------------सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२६.४.१२ ८.३०-९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, April 26, 2012

हैप्पी बर्थ डे टू “सत्यम “


हैप्पी बर्थ डे टू सत्यम 
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मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों 
मित्र हमारे दिल हो 
मात - पिता के बहुत दुलारे 
जग के तुम दीपक हो !
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आओ अपने नन्हे कर से 
सुन्दर प्यारा जहाँ बनायें 
सूरज चंदा तारों से हम 
झिलमिल -झिलमिल इसे सजाएं !
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प्रेम की बहती अमृत धारा 
कमल गुलाब खिले चेहरे हों 


मंद मंद मुस्कान विखेरे 
हम नूर नैन के दिलों बसे हों !
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फूल खिले हों चिड़ियाँ गायें 

नाच मोर हर दिन सावन हो 

ख़ुशी रहे "तुलसी" घर आंगन 
ज्ञान का दीपक ज्योति जगी हो 
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होली दीवाली से हर दिन 
झूमें हम - मन - मिला रहे 
गुडिया गुड्डे और घरौंदे 

अपनी दुनिया सजी रहे !
  
देश के वीर सपूत बनें हम 
भारत - माँ - के लाल बनें 
शावक से जब सिंह बनें हम 
गरजें अरि के काल बनें !

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सभी बड़े- छोटे- सब मिल के 
ह्रदय लगा  - दे - दें आशीष 
सदा सहेजे --  मै रखूँगा 
नमन करूँ - तुम गुरु हो- ईश !
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कल है मेरा जन्म-दिवस- 'प्रिय'
केक काटने आ जाना 

स्नेह लुटा बबलू पप्पू बन 
लड्डू -टाफी - खा जाना 

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गुब्बारे- संग -फूल खिलेंगे
खुश्बू  होगी- कविता होगी 
भ्रमर रहेंगे मधुर गीत में 
काव्य गोष्ठी अद्भुत होगी 
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आपका स्नेहाकांक्षी 'सत्यम"
द्वारा भ्रमर-५- २६.४.२०१२ 
प्रतापगढ़ उ.प्र. 





दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, April 24, 2012

चार रुपइया और बढ़ा दो


चार रुपइया और बढ़ा दो
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दो रोटी के पड़े हैं लाले
भूखे-दूखे लोग भरे हैं
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बहन बेटियाँ बिन -व्याही हैं
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
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मंहगाई ना कुछ कर पाती
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
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कोई जमीं फुटपाथ पे सोया
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
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( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
विस्वा – मेंड़ जमीं की खातिर
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
——————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, April 21, 2012

हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे या कर दे तू “हीरो ”


हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
—————————————
हे प्रभु मुझको जीरो (शून्य) कर दे
शांत चित्त मै सुप्त रहूँ बस
दिवा स्वप्न ही देखे जाऊं
अन्यायी -पापी -राक्षस को
सपने में मै धूल चटाऊँ
खुश रखूँ अपने – मन को मै
इच्छा पूरी कर पाऊँ
इस जगती के “मूर्ख ” मनुख से
लड़-भिड़ काहे खून बहाऊँ !
—————————————
अगर “एक” कोई भल-मानस
इन्सां आगे कदम बढ़ाये
मै “जीरो” उससे जुड़ -जुड़ के
शक्ति “एक” की “खरब “ बनाऊं
रंजो गम दिल के सारे मै
उसके ले कर – “शून्य” बनाऊँ
सिर आँखों के पलक पांवड़े
बिठा के – उस “प्यारे भाई” को
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फूलों का मै हार पिन्हाऊँ
पूजे जाऊं जोश भरूँ मै
“मंच ” चढा स्वागत करवाऊं
—————————————–
सब जीरो मुझ संग फिर मिल के
सुन्दर – प्यारा – जहां बनायें
मुक्त रहें – मन मिले हों सब के
ऊषा -निशा -खिल-खिल दिखलायें
गर्व से उन्नत शीश हमारे “कर्म” हमारा
घर आंगन फसलें हरियायें
पूत – सपूत – बनें सारे ही
जग-जननी ऐसी कृति लायें
पूजन भजन करूँ तब इनका
मुस्काऊँ मै “माथ” नवाऊँ !
—————————————–
या प्रभु मुझको “हीरो” (अभिनेता ) कर दे
पीटा जाऊं -पड़ा रहूँ मै धूल चाटता
अन्यायी के तीरों घायल
लहू – लुहान खून से अपने
इस प्यारी धरती माता को सींचे जाऊं
लडूं सदा मै अन्यायी से जोश भरे नित
कोड़े चाबुक से छलनी मै देह कराऊँ
दर्द जगेगा – ममता रोये – सारे दें फिर साथ
जोश – जूनून भरे फिर “उठ” मै
अन्यायी को धूल चटाऊँ
घर में घुसकर खींच -खींच कर
अच्छाई की देवी आगे “भेंट” चढाऊँ
——————————————–
दौड़ा-दौड़ा भीड़ में उनको
करनी का फल मै दिखलाऊँ
माँ बहनें सब “लात” मार दें
शोषित जन “छाती” चढ़ जाएँ
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( सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
धूल चाट कर – नाक रगड़ कर
“पापी” जब प्रायश्चित कर ले
चौराहे इन चोर-पापियों को टाँगे मै
बुरे काम का बुरा नतीजा
मुहर लगाऊं -मुक्ति दिलाऊँ
——————————–
हे प्रभु मुझको “जीरो” कर दे
या कर दे तू “हीरो ”
बन त्रिशंकु यों अधर लटकना
दूभर होता जीना !
—————————————
प्रिय मित्रों आइये अन्ना जी के हाथों को और मजबूत करें ……एक मई से स्वागत समारोह शुरू हो रहा है ……..जय श्री राधे
शुक्ल भ्रमर ५
८.१६-८.४९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी -२०.०४.१२

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

रचनाएँ चोरी हो रही हैं —“प्यार मुझको भी हो जाये तो कुछ बात हो”


surendra shukla bhramar5 के द्वारा April 20, 2012
प्रिय मित्रों आप सब का बहुत बहुत आभार …प्रतीक ने वह रचना दिव्या जी की हटा दी है आइये अब वैर भाव भूल समझाएं ..शान्तिः शांतिः
http://dineshpareek19.blogspot.in/2011/03/blog-post_13.हटमल
हम एक हैं हम नेक हैं ….
भ्रमर ५
प्रिय मित्रों विरोध दर्ज करने के लिए आप सब का बहुत बहुत आभार अभी तो प्रतीक ने मेरी प्रतिक्रियाओं को मिटाना शुरू किया है देखता हूँ कब तक ये बेशर्मी रहेगी अपना विरोध उनके ब्लॉग पर दर्ज करते रहें …
जे जे जी यहाँ पर बहुत सी प्रतिक्रियाएं डैश बोर्ड में तो दिखाई देती है लेकिन मुख्य पृष्ट ब्लॉग पर नहीं बड़ी असुविधा हो रही है कृपया जांच करें
surendr shukl bhramar5 के द्वारा April 18, 2012
प्रिय मित्र प्रतीक जी बड़े ही दुःख और खेद के साथ ये आप को लिखना पड़ रहा है की ये रचना
“प्यार मुझको भी हो जाये तो कुछ बात हो” जो की दिव्या जी द्वारा जागरण जंक्सन में १५-फरवरी -२०११ को डाली गयी थी ..पता चला की चोरी हो गयी है ..आप के ब्लॉग पर ये पोस्ट देख हैरानी हुयी कृपया स्पष्ट करें ..आप ने लिखा है मेरी कविताओं का संग्रह ..संग्रह तो किसी कवी लेखक की कविता का भी होता है पर उससे अनुमति ले कर कृपया अपना पक्ष स्पष्ट करें ..ये मान मर्यादा के विपरीत है और इसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता ..
आशा है आप या तो दिव्या जी से इसकी अनुमति ले लें या तो फिर इस पोस्ट को हटा दें …….
http://div81.jagranjunction.com/2011/02/15/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9D%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%95/#comment-१६३२, दिव्या जी के पोस्ट की लिंक जागरण जंक्शन में उपर्युक्त है ….
भ्रमर ५
surendr shukl bhramar5 के द्वारा April 18, 2012
दिव्या जी आप की बात को जरुर दिनेश प्रतीक जी तक पहुंचाई जाएगी..ब्लागिंग में हम जुड़े भी हैं एक दूसरे के समर्थक भी हैं ..बड़ी ही चिंता का विषय है हर जगह चोरी और खुले आम सीना जोरी..अगर आप का नाम दे के पोस्ट किया होता तो शायद आप की अनुमति मिल भी जाती ?? ..मैंने आप की यह पोस्ट नहीं पढ़ी थी शायद और वहां अच्छी लगी इस लिए वहां प्रतिक्रिया दिया था ,,,
साइबर चोरी बहुत बढ़ गयी है सब कोई कम से कम अपने खाते तो जरुर बचाना भाई ..
भ्रमर ५
भ्रमर जी नमस्कार, मैं जेजे मंच से दिव्या
मुझे अभी किसी ने बता की मेरी एक रचना किसी ने अपने नाम से पोस्ट करी है वहाँ देखा तो सही पाया मेरी उस रचना को दो अलग अलग ब्लॉग मे पोस्ट किया गया है एक जगह तो कमेन्ट दिया है मगर इधर दूसरी पोस्ट मे कमेन्ट नहीं दे पा रही हूँ आप का कमेन्ट देख के आप के ब्लॉग तक आई हूँ आप से एक अनुरोध है कृपया उस ब्लॉग मे मेरी बात पहुंचा दीजिए मैं आप को अपने ब्लॉग का भी और दूसरी ब्लॉग का भी लिकं दे रही हूँ | ये लिंक मेरे ब्लॉग का हैhttp://div81.jagranjunction.com/2011/02/15/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%9D%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%95/ ……………. और ये उस साहित्यिक ………. मोहदय का http://dineshpareek19.blogspot.in/2011/03/blog-post_13.html
आप की अति कृपया होगी
दिव्या div81



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, April 7, 2012

होरी खेलि रही सरकार

होरी खेलि रही सरकार
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अपनी अपनी थाप ढोल पे
रोज बजाये जाती है
चोर-चोर मौसेरे भाई
गाना-गाये जाती है
रंग -विरंगे मदिरालय का
उदघाट्न करवाती है
बेंच -खोंच सब नशे सिखाकर
अपना-धंधा चलवाती है
कर में “कर” को भरे हुए
जोड़ -तोड़ घर बाहर करती
घर तो अपना भर डाली ?
अब बाहर जा पहुंचाती है
बनी पूतना सजी -संवारी
बच्चों के संग घुल मिल खेले
चीर- हरण में जुआ खेलती
दरबारी संग हंस हंस झूमे
गुझिया सा चूसे जनता को
“काला” रंग लगाती है
भंग पिला के मोह भी लेती
जबरन हंसा दिखाती है
फाड़-फाड़ कर कपडे तन के
बड़ी नुमाईश -भिखमंगों की
पत्र -पत्रिका अख़बार में
नित नूतन छपवाती है
कर गरीब रैली भूखों को
यहाँ -वहां दौड़ाती है
एक बार का भोजन डाले
पैदल -पथ भरमाती है
लट्ठ मार होली भी खेले
लाल रंग हो गली गली
खुद तो ऊंचे चढ़ी हुयी है
नशा अहम् रंग रंगी हुयी
ना जाने कब गले मिलेगी ??
परिजन सब को भूल चली
यही कृत्य सब परिजन कर दें
तो हो कैसा हाल ?
काम न आयें भ्रष्टाचारी
नोचें सिर बेहाल !
होरी खेलि रही सरकार
गठरी बाँधे आयें साजन
गिद्ध दृष्टि है -ले जाए उस पार
कितने गए खजाने लेकर
भव -सागर के पार
पढ़ी -लिखी है ?? मूर्ख बनाए ?
या अंधी सरकार !!
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भ्रमर ५
कुल्लू यच पी
७.०४.२०१२
६.३५-७.१० पूर्वाह्न


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, April 2, 2012

यहीं खिलेंगे फूल


यहीं खिलेंगे फूल
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क्या सरकार है कैसे मंत्री
काहे का सम्मान ??
भिखमंगे जब गली गली हों
भ्रष्टाचारी आम !
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माँ बहनें जब कैद शाम को
भय से भागी फिरतीं
थाना पुलिस कचहरी सब में -
दिखे दु:शासन
बेचारी रोती हों फिरतीं
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बाल श्रमिक- होटल ढाबों में
मैले –कुचले- भूखे -रोते
अधनंगे भय में शोषित ये
बच्चे प्यारे वर्तन धोते
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इंस्पेक्टर लेबर आफीसर
बैठ वहीं मुर्गा हैं नोचे
खोवा दूध मिलावट सब में
फल सब्जी सब जहर भरा
खून पसीने के पैसे से
क्यों हमने ये तंत्र रचा ??
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जिसकी लाठी भैंस है उसकी
लिए तमंचा गुंडे घूमें
चुन -चुन हमने- बेटे भेजे
जा कुछ रंग दिखाए
नील में –गीदड़- जा रंगा वो
कठपुतली बन नाचे जाए
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गली -गली जो गला फाड़ते
बदलूँ दुनिया कल तक बोला
मिट्ठू मिट्ठू जा अब बोले
कभी बने बस -भोला-गूंगा
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रिश्ता नाता माँ तक भूला
कैसा नामक हराम !
पढ़ा पढाया गुड गोबर कर
देश न आया काम !
मुंह में राम बगल में छूरी
क्या दुनिया – हे राम !
किस पर हम विस्वास करें हे
नींदे हुयी हराम !
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आओ भाई सब मिल करके हम
अपना बोझ उठायें
जो हराम की खाएं उनसे
सब हिसाब ले आयें
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वीर प्रतापी जनता सारी
तुम सब ही हो सच्चे राजा
कर बुलंद आवाजें अपनी
देखो कैसे जग थर्राता
सहो नहीं हे सहो नहीं तुम
एक बनो सब -सच्चे-भ्राता
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जो काँटा बोओ -पालोगे
यही गड़ें- बन शूल
कहें “भ्रमर” -सूरज- हे निकलो
करो भोर हे ! समय अभी अनुकूल
करो सफाई घर घर अपने
काँटा फेंको दूर
चैन से कोमल शैय्या सो लो
यहीं खिलेंगे फूल
Bhramar5
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.४.१२ कुल्लू यच पी
७-७.३९ पूर्वाह्न




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं