BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, March 23, 2012

कब तक माँ की कोख में ??

मिटटी में दबा वह बीज
अंकुरित हो उभर चुका था
अँधेरे से उजाले की ओर
अब हवा बताश धूप छाँव
तूफ़ान बवंडर धूल मिटटी
सहना नसीब बन गया है
कब तक माँ की कोख में ??
अब तो कड़ी धूप में झंझावत में
ओलों में शोलों में
जलना होगा – सींचा जाएगा
हरियाली से हरा भरा हो -मुस्काएगा
कभी मालिक की कृपा दृष्टि से
फूल जाएगा -एक से सौ सहस्त्र
कभी अपना खुद का जीवन भी
बचा नहीं पायेगा
जन्म देने पालने – पोषने वाले के
हाथों ध्वस्त या
पैरों तले रौंदा जाएगा
लेकिन परवाह कहाँ
चल पड़ा चलता रहा बढ़ता रहा
जैसी जमीन मिली बढेगा
फलेगा -फूलेगा
दबते दबाते -टेढ़ा मेढ़ा खड़ा हो
रो लेगा
आसमान से झरते आंसुओं के साथ
पर जी लेगा
भाग्य तो धरा का धरा रह गया था
उसी दिन जब जहां में आया
मुट्ठी बंधी खुल चुकी
ना जाने अब कौन सी चक्की में पिसना
क्या होना –
किस बात पे रोना ?
वक्त का चक्र
काल का पहिया – संगी हैं
वही निर्धारित करेंगे
उसका हँसना रोना !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
दसुया -जालंधर मार्ग में
२२.३.१२- ११.३०-१२ पूर्वाह्न


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

7 comments:

  1. jeevan gatha ka sateek chitran kiya hai..........

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  2. सटीक प्रस्तुति...

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  3. manav jeevan ki uha poh man ka dwand jeevan ka sangharsh ek paudhe ke bimb se bahut sundar abhivyakt kiya hai.

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  4. शत शत नमन अमर शहीदों को...नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें !

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  5. नव संवत्सर का आरंभन सुख शांति समृद्धि का वाहक बने हार्दिक अभिनन्दन नव वर्ष की मंगल शुभकामनायें/ सुन्दर प्रेरक भाव में रचना बधाईयाँ जी /

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  6. बहुत बढ़िया...
    सटीक रचना...
    नव संवत्सर की शुभकामनाएँ.

    सादर.

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
    नवरात्र एवं नवसंवत्सर की सादर बधाईयाँ

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५