BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Wednesday, February 29, 2012

तुलसी गीता रंक वास में


तुलसी गीता रंक वास में
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(फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )

अरे विधाता क्यों कठोर तू
पत्थर मूरति मंदिर बैठा
देख देख हालत दुनिया की
क्यों ना दिल है तेरा फटता
कुछ तो दया दिखाओ
अब आओ अब आओ ..
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प्रेम की अलख जगा दे जोगी
सब होते-सब आज हैं रोगी
सडा गला मन लेकर घूमें
बाज गिद्ध सब -हंस न दिखते
दुनिया ज़रा बचाओ
अब आओ अब आओ .
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बड़े महल हैं सजे सजाये
मन मिलता -ना -नैन मिलाये
तुलसी गीता “रंक” वास में
पावन गंगा -जल डाले तुम
जीवन सरल बनाओ
अब आओ अब आओ .
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प्यारे बच्चे घूम रहे हैं
भूखे नंगे रोते सोते
कहीं बाँझ गोदी है सूनी
विपदा सब हर जाओ
अब आओ अब आओ .
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नयन विहीन -चक्षु दे जाओ
बेसुर को सुर ताल सिखाओ
उस गरीब को हक दिलवाओ
पत्थर दिल पिघलाओ
अब आओ अब आओ .
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नैनो में तुम ज्योति जगा दो
मन खुश्बू भर जाओ
शान्ति ख़ुशी – सुख भरा हो आंगन
राम-राज्य फिर लाओ
अब आओ अब आओ .
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भरो ताजगी जोश होश सब
सूरज चंदा बन चमकें
धरती गगन सा हो विस्तृत मन
पुलकित रोम-रोम मन महके
मुक्त फिरें हम संग-संग गाते
सब को गले लगाओ
अब आओ अब आओ …..
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हरी भरी बगिया हो सब की
बुलबुल कोयल चहकें
मन-मयूर हों नर्तन करते
चंदन -पुष्प-सरीखे महकें
तितली सा- शिशु मन -उड़-उड़
इन्द्रधनुष हो जाए
अब आओ… अब आओ …..
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर५”
७.२१-७.४५ पूर्वाह्न
करतारपुर जल पी बी २४.०२.12



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, February 21, 2012

जीवित क्यों हूँ जब सब रोयें


बेवफा सनम को दिल में बसाए उसकी हर चाहत को पूरा करने जब प्रेमी निकला तो उसके आसमान छूते ख्वाब को पूरा करने की चाहत में जिन्दगी में न जाने क्या क्या उसे करना पड़ा झेलना पड़ा और उसकी जिन्दगी अनचाहे पथ पर चल निकली एक तरफ प्रेम और एक तरफ जिन्दगी का भटकाव कशमकश …उहापोह …ये जिन्दगी भी न जाने क्यों परीक्षा लेती है ..जिन्दगी एक गजब की पहेली है …कभी तो ये अलबेली है और कभी बिन पानी के तडपती एक मछली …….
जीवित क्यों हूँ जब सब रोयें

प्रिय दिल की दूरी ही कम करने
भूला -भटका लाश ये ढोये
बढ़ा जा रहा अंधकार में
पथ को खोये
पग लहू-लुहान तो तब ही थे
जब पत्थर तोड़े
भूखे नंगे छिप पड़े जो सोये
दबते अब -
हाथ भी अपने खून से धोये
लौटूं कैसे पास तुम्हारे
राह नहीं
चाह नहीं -
धन मन ले -क्यों नैन भिगोये ?
इज्जत सारी खुशियाँ भर
महलों में सोये
सानिध्य मेरा-दिल क्यों चाहे अब ?
सौ टुकड़ों में टूटा दिल
मै रखा संजोये
काँच सरीखा दिल में तेरे
चुभ न जाए
आग धधकती थी तब-अब भी
नीर नैन से हमने खोये
एक दूजे को देखे – पर थे
सुख सपनों में सोये
गला घोंट लूं -अपना ही क्या ?
पग थम जाता
जीवित क्यों हूँ जब सब रोयें ??
पथरीले राहों झरने को देखे -
बढ़ता जाता आस संजोये !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी २१.२.12




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Monday, February 13, 2012

कुलक्षनी


प्रिय मित्रों प्रेमी -प्रेमिका दिवस मुबारक हो , आप सब के प्रेम की बगिया में हरियाली खुशहाली भरी रहे गुल गुलशन खुश्बू से भरपूर हो बुलबुल और अपनी अपनी कोयलें चहकती रहें पवित्र प्रेम दिल में बसा सदा के लिए छाया रहे जो चोली और दामन का साथ कहलाये …..
आइये समाज में समता लायें विषमता भगाएं प्रेम कोई बंटने बांटने की चीज नहीं नैसर्गिक असली प्रेम हो सब का हो प्रेम के अनेकों रंग सब अपनी अपनी जगह विराजमान रहें सब खुश और मस्त रहें …
जय श्री राधे
कुलक्षनी
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कौन सा समाज ?
नीति नियम आज?
अन्धविश्वास-धर्म -कानून
सब इंसानों के बनाये
चोंचले हैं झूठ का पुलिंदा
वे ताकतवर हैं
उनकी बेटी भाग गयी –आई-
महीने भर बाद
धूमधाम से शादी रचाई
सब है आबाद !
माडर्न है पशिचम का पुतला
नेता धर्म के समाज के
पंडित पुरोहित आये -खाए
जश्न मनाये -हँस हँस बतियाये
कमर में हाथ डाले नाचे झूमे गाये
ठुमके लगाए …
क्या राम रामायण ?
कौन सीता ?
न धोबी न रामराज्य
ना कोई अग्नि परीक्षा
चेहरे होंठों पे लाली लगाए
लालिमा समेटे
बेटी अब “लाल” हो गयी है
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बुधुवा की बेटी का
बचपन के साथी से
प्यार -पवित्र प्रेम हो गया
दूरी बढ़ गयी है -नजरें झुकाए
दूर से हंसती बतियाती है
सखियों के साथ
कभी उस और चली जाती है
पनघट -फुलवारी में
धुंधलके से पहले
डरती-हांफती -घर दौड़ी चली आती है
माँ की छाती से लिपट जाती है
धर्म के ठेकेदार -कानूनची
सह न पाए —
पगलाए -बौराए -पञ्च बुलाये
अनर्थ हो गया -धर्म भ्रष्ट हो गया
हमारे रीति रिवाज
प्रथा परंपरा
संस्कृति का नाश हो गया
नैतिक मूल्यों का ह्रास हो गया
लकड़ी जला माथे पे दागे
अब वो “कुलक्षणी ”
बिटिया इस समाज का दाग
कलंक- “काल” हो गयी है
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सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
४.०५-४.३३ पूर्वाह्न
१३.२.१२ कुल्लू यच पी




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, February 10, 2012

हे वोटर महराज वोट दो




दूल्हा -दुल्हन राजा रानी
आज के दिन वोटर महराज
हम नेतवन हैं प्रजा तुम्हारी
झाड़ू पानी साफ़ सफाई
सभी करेंगे तेरे काज !
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घोडा -घोड़ी नहीं पालकी
आ हमरे सिर काँधे बैठो
जब तक ठप्पा नहीं हो मारे
संग घूमो खाओ सब रस लो
पाँव बिवाई और पसीना
कुढ़ते रोते फिर तू चल दो
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हे वोटर महराज वोट दो
गंगा तभी खुदायेंगे
करें भागीरथ काम तभी तो
तेरी प्यास बुझाएंगे
भीष्म सा तीरों तुझे लिटा के
छाती तीर चलाएंगे
कुछ जो शेष रहा पानी तो
हरिद्वार ले जायेंगे !
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गाँव गली हर ओर सडक ज्यों
बह-बह जी जंजाल हुयी
ऐसे ही दस – बीस के पैसे ले दे भाई
रफू मरम्मत करवाएंगे
वाहन कमर टूट जाए तो
अस्पताल खुलवायेंगे
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झगडू चाचा ना कर चिंता
“देखा” हमने तेरी गरीबी
बिटिया हुयी जवान
बिटिया की शादी में तेरे
दस-दस नोट चढ़ाएंगे
सौ चमचों के संग में आकर
दस हजार खा जायेंगे
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दो सौ बच्चे प्रायमरी में अध्यापक दो एक
मेरे चमचे मल-खनवा से
“नर्सरी ” एक खुलवायेंगे
कान मरोड़े गुरुदेवों के
जेब भरे हम जायेंगे
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(फोटो साभार याहू / नेट से )

बंद करा -स्कूल-गिरा जो
काम करेंगे नेक !
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सब प्रधान पञ्च से मिल के
हाथ पैर ऊँगली की सारी  
ठप्पा- कागज लगवाएंगे
ऐसे रोजगार गारंटी
चालू और करायेंगे !
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रोटी दारु साडी कम्बल
पांच साल में ले जाओ
अपने क्षेत्र से जो हमें जिताए
अजगर से तुम बैठ के खाओ
नहीं तो गर्मी आग लगे है
खेत बगीचा खलिहान सब
झोपडपट्टी चलो बचाओ !
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सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर
7.10-7.57 पूर्वाह्न
6.2.2012
कुल्लू यच पी



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, February 4, 2012

सांप सरीखे घर के लोग ? चुनाव


(फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
हमारा हिंदुस्तान
भेंडिया धंसान
एक भेंड कुएं में कूदी की बस
कुवां भर गया
उनका काम हो गया
शातिर लोग कुछ को खिला पिला
माथे पे बलि का चन्दन लगा
हमारे ही बीच से अगुवा बना …
तालियों की गड़गड़ाहट
पराये मुंह मियाँ मिट्ठू बन
मूरख मंच से ‘मुन्ना” काका
तोते से पढ़ पढ़ा सीख आये
पंद्रह दिन कोशिश करते जोर लगाए
बेटा बहु बेटी को आंगन की चौपाल में
“एक” दिन रविवार को जुटा पाए
विकास गली हैण्ड पम्प चक रोड
रोड पुल स्कूल पंचायत भवन
मंहगाई डायन तक सब ने अंगुली उठाई
लेकिन जब एकजुट होने की
वोट देने की -न देने की बात आई
भ्रष्टाचार के मुद्दे पे बात आई
तो विजय चिन्ह वी की ऊँगली ना उठ पायी
एक एक कर सरकने लगे
सांप सरीखे  घर के लोग ?
जाते जाते मुन्ना को सुना गए …
कौन देगा कोचिंग टिउसन बिल्डिंग फीस
ब्लड प्रेशर सुगर डॉ आपरेशन की फीस
डीजल पम्प खाद मजदूरी लों
गिरता कच्चा घर रोटी तेल नोन
लैपटाप प्रोजेक्ट मोटर साईकल
चार पहिया दसियों लाख
निकम्मों की डिमांड है
दहेज़ के दानव का असर देखो
विक्षिप्त बेटी -…
पढ़ी लिखी ढांचा सी ….
घुटन से कैसे बीमार है
सिसकती बीबी उस और मुह फेर कर
आँसू टपकाते बैठ गयी
“मुन्ना” काका खुरपी पलरी लिए
दस विस्वा जमीन -दस प्राणी ….
जोर से साँस लेते भरते आह
ताकने लगे आसमान !!——–
सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
४.२५-५ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी
४.२.२०१२




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं