BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Sunday, October 9, 2011

किंचित परिवर्तन दिल का ही विचित्र रूप -शांति



शांति (शांति नहीं तो मखमल पर भी नींद नहीं )
चाह नहीं वह दिन फिर आये
पर जाने क्यों -
मधुर अहसास सुरों के संगम भीनी सी गंध
आज भी वैसे ही तारो ताजा -
अपरिवर्तित द्विगुणित सुख दुःख दायिनी
स्वप्निल झील सी आँखों में
तैरती ख्वाबों की बगिया
हरित वसन में लिपटी वो गुडिया
गुलाबी होंठ, थिरकती जादू की पुडिया
रेशमी नहीं काली छड़ी घुमाती फिराती
मोरनी सी चाल नूपुरों की झंकार
दिन और रात का मिलन कब होता ख्याल नहीं
यही तो बिलकुल यही -
स्थिति आज भी छाये है , पर
किंचित परिवर्तन दिल का ही विचित्र रूप
दिल को ही सताए है
न उसे याद करता न तो भूलता है
जलज बिना जल जला चला जाता है
चातक सम एक दृष्टि दूजा न भाता
आस सांस संग हिये जग भरमाता है
ज्ञान जप जोग भोग प्रियतम से हारे हैं
रूप रंग , प्रीति से विनीत कर्म सारे हैं
भूले भी वे दिन कैसे आँखों में जो छाया है
आँखों से मोती नहीं लाल ढुलक आया है
मानव क्रूर कीड़ों से भी बदतर होगा
ऐसा किसने सोचा था
नारी देवी श्रधेय पूज्य
ये सब क्या मिथ्या धोखा था
अज्ञान काम की आंधी में
खुद का विनाश होते देखा
दिल में बुझती नहीं आज भी
चिता वही जो जलते देखा
चाह नहीं वह दिन फिर आये
फिर भी हूँ टक-टकी लगाये
विश्वास है देर होगी अंधेर नहीं
चिता शीघ्र ठंडी होगी जलेगी नहीं
क्रंदन से फटे कान उसके
दिल में चुभते कांटे
जागृत होगा मनु का समाज
युग-युग फिर खुशियाँ बांटे
“शांति” हाँ वही फिर आएगी
यह टीस आँचल में छुपाएगी
प्यार भरे हाथों से
शाश्वत नियम दुहराएगी
फिर वही कूक -सुमधुर संगीत
और हरियाली छाएगी !!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१०.१०.२०११ यच पी ८.४५ पूर्वाह्न



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

8 comments:

  1. चातक सम एक दृष्टि दूजा न भाता
    आस सांस संग हिये जग भरमाता है
    ज्ञान जप जोग भोग प्रियतम से हारे हैं
    रूप रंग , प्रीति से विनीत कर्म सारे हैं



    भावपूर्ण रचना , आभार

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  2. bhavon se bhari aisi rachna ..kavita ke sath dheere dhere kadam se kadam milakar chalna hota hai..behtarin prastuti..sadar badhayee aaur amantran ke sath

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई स्वीकार करें ||

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  4. आदरणीय शुक्ल जी रचना भावपूर्ण लगी सुन हर्ष हुआ लिखना सार्थक रहा
    आभार
    भ्रमर ५

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  5. डॉ आशुतोष जी बहुत सुन्दर और प्यारी प्रतिक्रिया आप की सच में धीरे धीरे कदम मिला चलने से रचनाओं का भाव बोध ठीक से होता है और भाव निखरते हैं जो आपने देखा ...मन खुश हुआ
    आभार आप का प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  6. प्रिय रविकर जी रचना की प्रस्तुति आप के मन को छू सकी सुन हर्ष ह़ुआ
    आभार आप का प्रोत्साहन हेतु
    भ्रमर ५

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  7. निवेदिता जी आभार और अभिवादन रचना पसंद आई सुन हर्ष हुआ
    भ्रमर ५

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५