BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Thursday, August 4, 2011

आई बरखा बहार –घर आ जा बलमू


आई बरखा बहार –घर आ जा बलमू
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आई बरखा बहार
रिमझिम पड़े ला फुहार
जियरा उमडि–उमडि तरसाए
घर आ जा बलमू !!
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नीम के डारी झूला पड़ गए
तन मन सब गदराया
धानी चुनरिया – पेंग लड़ाकर
उडि मन- ज्वालामुखी बनाया
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हरियाली -संग फूल खिले- पर
पीला पड़ता गात हमारा
मूक नैन हों इत- उत भटकें
रिमझिम सावन मन ना भाता
जल्दी बरसे घहर-गरज कर
जियरा जरा जुडा जा
घर आ जा बलमू …..
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सखी सहेली राधा-कृष्णा
रास -रंग सब मन भरमाये !
पावस ऋतू नित बरस -बरस के
अग्नि काम भड़काए !
भीग-भीग इत उत घूमूं मै
नैन नीर हिय जेठ दुपहरी
बेबस पपीहा पीऊ -पुकारे !
सेजिया नींद न आये !
घर आ जा बलमू ————–
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नागपंचमी पे आ जाना
गुडिया -गुड्डा –मेला- सर -का
जी भर लुत्फ़ उठाना
कजरी -मल्हार-वो मटर का दाना
मार-मार -वो सजा सजाया लाठी डंडा
कुश्ती- दंगल -हंसी ठिठोली
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रंग रंगोली -झूले पर हे पेंग लगाये
पेंच लड़ाए -ज्यों पतंग सा
बदली तक मुझको पहुँचाना
इतने ऊपर !
इन्द्रधनुष से रंग बदल मै
शीतल हो जब बरस पडूँ
बूँद बूँद मोती बन जाये
हीरे सी मै चमक पडूँ
लिए बांसुरी- मीत – मल्हार
कजरी –गा- मै -कमल खिलूँ
तुम भौंरे हे ! बंद कली में
रात यहीं सो जाना
घर आ जा बलमू ……
( सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर ”
4.08.2011, ५.३५ पूर्वाह्न जल पी बी



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

7 comments:

  1. Brakha ke mausam mein bahut badiya barkhabahar prastuti..

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  2. सुंदर बरखा बहार है... खुबसूरत रचना है...

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  3. बहुत सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति

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  4. sawan ko aur khubsurat karti apni rachna...

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  5. सुंदर भावाभिव्यक्ति....उम्दा रचना

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  6. सम्माननीया कविता जी , सुषमा आहुति जी , डॉ मोनिका शर्मा जी -बरखा बहार में बलमु को बुलाती रचना को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार -भ्रमर ५

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  7. आदरणीय यस यन शुक्ल जी और सागर जी , बरखा बहार में बलमू की तडपा जाने वाली यादें आप के मन को छू सकीं लिखना सार्थक रहा
    आभार प्रोत्साहन हेतु

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५