BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, July 26, 2011

सूखी कड़ाही में जलती पूड़ी


सावन का महीना
हरियाली – कजरी
कारे बदरा उमड़ -घुमड़ डराए
images.jpg-black cloud
खुरपी -पलरी लिए घास की
अम्मा दौड़ी आई द्वारे
दामाद -बेटी के अचानक
घर आने की खबर सुन
थी सकपकाई
आस पास दौड़
सुब कुछ जुटाई
चूल्हे के पास धुएं में
बैठ बिटिया अम्मा संग
आंसू पोंछ -पोंछ
जी भर के बतियाई
पूड़ी कढ़ी
दामाद आया
कोहनी से मार- रूपा को
“उसने” -खूब उकसाया
“कुछ” कहने को
हलक में अटके शब्द
रूपा को गूंगा बनाये
फिर बिदाई
एक बंधन में बंधी गाय
चले जैसे संग -
किसी कसाई
गले लिपटी रोये
आंसू से ज्यों सारी यादें
धोती लगे – नीर इतना -
ज्यों बाढ़ सब कुछ
बहा ले जाए
अम्मा की मैली पुरानी साड़ी
सूखी कड़ाही में जलती पूड़ी
ज्यों सूखे सर में फंसा कमल
छटपटाना
घर का गिरता -छज्जा -कोना
देखती –चली —गयी ……
और कल सुबह
खबर आ पहुंची
स्टोव फट गया
images.jpg-flame
अरी ! बुधिया करमजली
रूपा ..तेरी बिटिया
तो जल गयी ………
burning-fire-flames-woman
(सभी फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया )
———————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
जल पी बी २७.०७.२०११ ५.४५ पूर्वाह्न
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

6 comments:

  1. बहुत कारुणिक प्रस्तुति , आँखों में आंसू दे दिए आपने तो

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  2. आदरणीय यस यन शुक्ल जी हार्दिक अभिवादन -
    सच कहा आप ने ये रचना और ये हालात हमारे समाज के आँखों में आंसू तो बरसा ही जाते है हम भी वैसे हमारा पंगु कानून भी वैसे --
    आभार आप का प्रोत्साहन के लिए -
    शुक्ल भ्रमर ५

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  3. गगन शर्मा जी अभिवादन -निरीह बेटियों की व्यथा ने आप के मन को छुआ -लिखना सार्थक रहा
    आभार

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  4. रोशी जी नियति तो नहीं है ये ..न ये उसका भाग्य ही कहा जा सकता है
    पर विडंबना है की हम आज सब कुछ यही मान लेते हैं ..
    ये दहेज़ के लोभी ..दैत्य ..दानव हैं जो उसे ...

    आप की प्रतिक्रिया के लिए आभार

    अपना समर्थन भी दें ..और हमारे अन्य ब्लॉग भी समय मिले तो पढ़ें
    बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
    http://surenrashuklabhramar5satyam.blogspot.com,

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५