BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Tuesday, June 21, 2011

मूर्खता (दूसरों से सीखने में हर्ज ही क्या है )

झलक मिलती है सूरज की
उग उठे बादल करे क्या
भनक मिलती है मूरख की
मुह खुले-आभूषण करे क्या
सोने पर धूल पड़े कितनी पर
सोना ही रह जाता है
घोड़े पर चढ़ ले मुकुट पहन
वो राजा ना बन जाता है
आतिशबाजी सी चकाचौंध बस
दीपक ना बन जाता है
खातिरदारी मुंह दांत दिखे बस
दीमक सा खा जाता है
कुल नाश करे- अधिकार मिला
उन्माद भरे ही विचार करे
“भ्रमर” कहें वो लुहार भला
घन मार सभी जो सुधार करे
निज रक्त चाट के खुश होवे
लम्पट- मद में धन नाश करे
निज भक्त मान के सब खोये
कंटक पथ में वह वास करे
जब यार चार मिल जाएँ तो
विद्वानों का उपहास करे
सब नीति नियम ही मेरी मानो
फूलों का दो हार हमें


सुरेन्द्र कुमार शुक्ल
३.०६.२०११ जल पी बी




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

4 comments:

  1. जब यार चार मिल जाते हैं |
    तो अपनी ही सदा चलाते हैं ||

    दुनिया उनको बुड़बक लगती-
    नौ - नौ त्यौहार मानते हैं ||

    मदिरा का गर पान कर लिया--
    अपनी महिमा ही गाते हैं ||

    बचिए ऐसे सिर खाऊ से --
    ये घर की नाक कटाते हैं ||

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  2. इक्जाम की आदत गई, इकजाम का अब फेर है

    उस समय था काम पढना, अब, काम ही हरबेर है

    अंधेर है,अंधेर है

    हर अंक की खातिर पढ़े,हर जंग में जाकर लड़े

    अब अंक में मदहोश हैं,बस जंग-लगना देर है

    अंधेर है,अंधेर है

    थे सभी काबिल बड़े, होकर मगर काहिल पड़े

    ज्ञान का अवसान है, अपनी गली का शेर है

    अंधेर है,अंधेर है

    न श्रेष्ठता की जानकारी,वरिष्ठ जन पर पड़े भारी

    जिंदगी की समझदारी में बहुत ही देर है

    अंधेर है,अंधेर है

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  3. रविकर जी साधुवाद

    न श्रेष्ठता की जानकारी , वरिष्ठ जन पर पड़े भारी --सुन्दर -शोभा बढ़ने के लिए धन्यवाद

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  4. आप के ब्लॉग पर जल्दबाजी में नहीं आता समय निकलकर आराम से आता हूँ इसलिए कम आ पता हूँ मगर आप की रचनाओं को एक के बाद एक पढ़ते पढ़ते जाने का मन नहीं करता यहाँ से...बहुत सुन्दर ...आइसे ही लिखते रहें हमें भी मार्गदर्शन मिलता रहे

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५