BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Monday, April 18, 2011

कली से जब तुम फूल बनी थी


कली से जब 
तुम फूल बनी थी 


वहीँ पास में 
डेरा डाले 
उस दिन मैंने 
पुंकेसर -   केशर -  दल
सब कुछ -रंग -बिरंगा
भौंरे सा कुछ
उड़े -  मचलते
देख लिया था
 सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१७.४.११ जल पी.बी. 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

No comments:

Post a Comment

दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५