BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Monday, April 18, 2011

उस बिजली के आलिंगन से


उस बिजली के

आलिंगन से


बादल जब मै
गर्वोन्नत हो
गरज गरज कर
घूम रहा था
सूखा -  रूखा
उस बिजली के
आलिंगन से
'छलनी' हो दिल
बरस पड़ा था

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
१६.४.2011



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

6 comments:

  1. चित्ताकर्षक लगी ..

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  2. अमृता तन्मय जी नमस्कार रचना आप को भायी - सुन ख़ुशी हुयी अपना प्यार सुझाव के साथ समर्थन भी दें -

    धन्यवाद
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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  3. श्री सुरेन्द्र शुक्ल जी!
    आपकी प्रेरणादायक रचना दूसरों के
    लिए मार्ग-दर्शक सिद्ध होंगी।
    साधुवाद!
    ===============================
    "डंडा" संत स्वभाव की, यही मुख्य पहचान।
    दीप जला कर ज्ञान का, करते जन कल्याण॥
    ===========================
    सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  4. डॉ डंडा लखनवी जी हार्दिक अभिवादन आपका- आप यहाँ आये -आप की प्यारी प्रतिक्रिया और आशीष जन कल्याण के लिए प्रेरणा बने इससे सुंदर और क्या हो कृपया अपना सुझाव व् समर्थन भी दें
    शुक्ल भ्रमर ५

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  5. प्रिय सुरेन्द्र सिंह झंझट जी -आप यहाँ हमारे ब्लॉग पर पधारे हार्दिक अभिनन्दन - रचना मनोहारी लगी सुन हर्ष हुआ हम आप से सुझाव व् समर्थन की उम्मीद भी लगाये हैं

    धन्यवाद

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५