BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, March 11, 2011

मेरा-" मन"-"मोहन" -कहीं खो गया ..shuklabhramar5-Kavita-Hindi poems

मेरा-" मन"-"मोहन" -कहीं खो गया ..
"मन"-"मोहन" था कितना प्यारा 
आँख का तारा 
माँ का अपनी -राज -दुलारा 
सीने से लिपटाये रहती 
आँचल सदा छिपाए रहती  
"राम" हैं  क्या और क्या "रामायण"
चार बजे -भिनसारे उठकर
चक्की- पीसे -गाये रोज
सुनाया करती
'बेसन' - रोटी जौ का सतुआ
मक्खन -घी संग -बथुआ साग
खिलाया करती
नया नया सुरमा ला ला के
टीका -काजल लाया करती
"आँख" तेज हो -जिससे उसकी
दूर -दृष्टि हो
कभी -कभी अंधियारे ले जा
दीपक एक जलाया करती
जोग-योग सिखलाया करती
बहुत रौशनी -चकाचौंध से -
बच के रहना
"शोर"-भीड़ से
दूर रहे तुम
शीतल करना
हाथ में "गंगा-जल" देकर के
पीपल-नीम -दिखाया करती !!
"रोज" सींचना -
"रोज" चढ़ाना
जल ये "पावन"
"पेड़" -सूखता
ये जो आधा -"मरा"-
"राम" है -पूजो इसको
धर्म यही -"ईमान" यही है
इसका फल "कड़वा" होता था
"कुछ ने आग -लगा  डाला था
नहीं आज -फल -इतना देता
मीठा -मीठा नहीं दीखता
कोई भूखा
तृप्त अगर तो
सपनो के संग -कपडे बुनते
ना -"नंगा" कुछ
कहीं दीखता !!
कान पकड़ कर  -"मन"- "मोहन" को 
क्या -क्या "पाठ"
पढाया करती !!!
रोज -अखाड़े- भेज-भेज कर
"पहलवान" कर डाला
"ताकतवर"
इस दंगल से - उस दंगल-
घूम-घूम -वो   "फंसता"   जाता 
'बड़ा"-अखाडा -बहुत 'दाँव" थे 
बहुत खिलाडी -धृष्ट -दुष्ट भी 
"उसको" -रोज "लड़ाया" करते
"आँख" में -  पट्टी उसके बांधे
क्या -क्या रोज सिखाया करते ???
उसे सामने -ला-ला
"धंधा" अपना - रोज चलाया करते !!!

सारे दाँव बिना सीखे वो
"आज"- "पटखनी" खाता जाता
"मन"-"मोहन" था कितना प्यारा !!!
माँ अब भी है -इतनी प्यारी
भाई- "उसके"- "बहुत" खड़े हैं
"हाथ" बड़े हैं -   "स्वागत" तत्पर
ना जाने क्यों ??? वो "गूंगा" बन
बात -  भेद कुछ कह ना पाता
"खोता "     -   जाता  -
"माँ" रोती है -    खून के आँसू
कहती घूमे "पगली" जैसे
सब को -  मेरा
मेरा - "मन" - "मोहन" -कहीं खो गया !!!

shuklabhramar5
NAARI,PATNAG,PAGLI,KOYALA, GHAV BANA NASOOR

3 comments:

  1. माँ" रोती है - खून के आँसू
    कहती घूमे "पगली" जैसे
    सब को - मेरा ,bahut sundar paktiya ,badhyiya

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद इरा पाण्डेय दुबे जी -स्वागत है आप का भ्रमर के दर्द और दर्पण में -मन -मोहन के भटक जाने से सच माँ रो रही है -आप ने गजब इस वेदना की अनुभूति को समझा -सराहा प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद -काश और जाऊ समुदाय भी माँ की भावनाओं का कद्र और सम्मान करे -शुक्लाभ्रमर५

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  3. प्रतीक जी बहुत सुन्दर लगा आप इस हिंदी ब्लोगिंग और हिंदी साहित्य में इतनी रूचि ले रहे हैं हम जिस मंच पर गए लगभग सब जगह आप को पाया -शुभ कामनाये लिखिए राजस्थान का नाम रोशन करिए
    surendra kumar shukla Bhramar5
    Pratapgarh Uttar Pradesh

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५